भारत डायबिटीज, कैंसर और बच्चों की मौत के मामले में दुनिया के प्रमुख देशों में है. इसके वाबजूद यहां का हेल्थकेयर सिस्टम काफी पीछे और पिछड़ा है. अब इसमें तेजी से बदलाव हो रहे है. और इस बदलाव को स्टार्टअप तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं.
Oleh Ratna Mehta
नई दिल्ली. कोरोना महामारी और बदलते वक्त के साथ हेल्थकेयर सिस्टम में भी बदलाव समय की जरूरत है. इस परिवर्तन को आगे बढ़ाने में स्टार्टअप्स ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वाधवानी फाउंडेशन, वाधवानी कैटेलिस्ट फंड की एक्जिक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट रत्ना मेहता ने इस मुद्दे का विश्लेषण का किया है.
भारत दुनिया भर की डायबिटीज राजधानी है, 73 मिलियन मामले मौजूद हैं, जो तेजी से बढ़ रहे हैं. अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के एक अध्ययन के अनुसार 2030 तक भारत में डायबिटीज के मरीजों की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि होगी. भारत में कैंसर के मामलों की संख्या दुनिया भर में तीसरी है. हर साल 16 लाख से ज्यादा भारतीयों को कैंसर होने का पता चलता है. इससे मरने वालों की संख्या 50 प्रतिशत होती है. और यही नहीं, भारत में नवजात शिशुओं की मौत के मामले सबसे ज्यादा होते हैं.
बीमारियों का बोझ इतना ज्यादा होने के बावजूद भारत उन देशों में है जहां स्वास्थ्य की देखभाल पर सरकारी खर्च सबसे कम है. बीमा के मामले भी यहां कम हैं. हेल्थकेयर सेक्टर में बिजनेस के ट्रेडिशनल मॉडल की पहुंच अच्छी नहीं है. कैपिटल एक्सपेंडिचर और परिचालन लागत बहुत ज्यादा है. इसके अलावा, कुशल संसाधनों की मांग और पूर्ति में भारी अंतर हैं.
टेलीमेडिसिन
टेलीमेडिसिन के अंदर भी भिन्न किस्म के मॉडल हैं और पूरी तरह ऑनलाइन से लेकर मिश्रित मॉडल तक हैं. मेडकॉर्ड्स एक ग्रामीण टेलीमेडिसिन प्लैटफॉर्म है जो ऑनलाइन टेली कंसलटेशन मुहैया करा रहा है. इसके लिए यह मेडिकल रिकार्ड को डिजिटाइज करता है और यह सुविधा फार्मैसी नेटवर्क के जरिए मुहैया कराई जाती है.
कर्मा हेल्थकेय
ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित ऐसा ही एक और प्लेटफॉर्म है, कर्मा हेल्थकेयर, जो हब और स्पोक मॉडल का पालन कर रहा है. इसके हब (केंद्र) में दो नर्सें होती हैं जो एक्सपर्ट डॉक्टर से टेलीकंसलटेशन संभव करती हैं.
ग्लोकल
ग्लोकल, टेक्नोलॉजी आधारित प्लेटफॉर्म है जो ग्रामीण आबादी को हेल्थकेयर तक पहुंच मुहैया करवाता है. इसके लिए इसके पास प्राथमिक और सेकेंड्री केयर अस्पतालों, डिजिटल टेक्नालॉजी और डिसपेंसरी का व्यापक एकीकृत मॉडल है. इस समय इसकी 141 डिजिटल डिसपेंसरी राजस्थान, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और कुछ पूर्वोत्तर के राज्यों में है. ग्लोकल के अस्पताल खास तरह से डिजाइन किए गए हैं और इनमें से प्रत्येक में 100 बिस्तर हैं और यह अपने किस्म के अनूठे उपकरणों के साथ है. 38 बीमारियों के लिए इसके पास मानकीकृत प्रोटोकोल हैं जो 91 प्रतिशत बीमारियों या स्थितियों को कवर करते हैं.
क्योर डॉट एआई (Qure.AI)
बैंगलोर आधार वाला एक स्टार्टअप, क्योर डॉट एआई (Qure.AI) एआई और गहरे ज्ञान वाले एल्गोरिथ्म का उपयोग करके स्कैन में असामान्यताओं की पहचान करता है. इससे स्कैन में असामान्यताओं का पता लगता है और इस तरह बीमारी का पता लगाने की सूक्ष्मता और गति बेहतर होती है. एआई कैंसर का पता लगाने में भी सहायता कर रहा है.
निर्मई
महिलाओं के स्वास्थ्य पर केंद्रित एक स्टार्ट अप निर्मई ने स्तन कैंसर का पता लगाने के लिए टेक्नालॉजी का विकास किया है जो मरीज के शरीर के तापमान को पढ़कर ही संभव हो जाता है.
‘हब एंड स्पोक’
‘हब एंड स्पोक’ जैसे बिजनेस मॉडल की नवीनता से महत्वपूर्ण मेडिकल सुविधाओं तक पहुंच बेहतर हो जाती है और यह सुनिश्चित होता है कि परिचालन कुशलता बेहतर हो तथा लागत कम हो. भारत के प्रमुख कैंसर संस्थान, टाटा मेमोरियल सेंटर का लक्ष्य देश भर में करीब 30 हब और 100 स्पोक स्थापित करने का है ताकि कैंसर के किफायती इलाज तक पहुंच आसान किया जा सके. प्रत्येक हब में हर साल 40,000 नए मरीजों की जरूरतें पूरी होने की उम्मीद है जबकि स्पोक से 8,000 नए मरीजों का प्रबंध किए जाने की उम्मीद है. उद्देश्य यह है कि हब्स के जरिए पहुंच को बढ़ाकर 40 मिलियन और स्पोक के जरिए 5-10 मिलियन लोगों तक पहुंचा जाए.
गुजरे पांच वर्षों के दौरान ऑनलाइन फार्मैसी के उभरने से दवाइयों तक पहुंच और उन्हें सामर्थ्य में लाने में सहायता मिली है. एनालिटिक्स संचालित इनवेंट्री मैनेजमेंट से फिल रेट्स ज्यादा हैं और ज्यादा बिक्री के कारण मरीजों को बेहतर दर पर दवाइयां मिल रही हैं जबकि टेक्नालॉजी एनैबल्ड आपूर्ति श्रृंखला से तेज डिलीवरी संभव हो रही है.
एम्स के अनुसार कार्डियैक मामलों में यह 24 प्रतिशत और हाइपर टेंशन के मामले में 50-80 प्रतिशत है. 1 एमजी, फार्मा ईजी और नेटमेड्स इस क्षेत्र में बड़े संस्थान हैं. इन्हें अच्छे निवेशकों का समर्थन हैं और ये अपने नेटवर्क का विस्तार देश भर में कर रहे हैं. इसके अलावा, दवा दोस्त जैसी कुछ और संस्थाएं हैं जो उभर रही हैं और संभावना है कि इन बड़ी संस्थाओं के साथ-साथ मौजूद रहेंगी बशर्ते दवा पहुंचाने के इस क्षेत्र ले अपने खास जगह बना सकें. यह सही अर्थों में हेल्थकेयर डिलीवरी स्पेस में एक बड़े बदलाव की शुरुआत है.