कोविड-19 संकट ने भारत के छोटे कारोबारियों के लिए सबसे ज्यादा मुश्किलें पैदा की है. अर्थव्यवस्था में 2020 के अंत तक जीडीपी वृद्धि महज 1-2 फीसदी के करीब रहने का अनुमान है. इसका सबसे बुरा असर छोटे व्यवसायों और गरीब तबकों पर होगा
एमएसएमई के लिए ‘इज़ ऑफ डुइंग बिज़नेस’ (Ease of Doing Business) का अंत: कोविड-19 की वजह से भारत के 7.5 करोड़ MSME में लगभग 19-24 फीसदी दिवालियापन या अस्तित्व खोने की कगार पर हैं. SME के बैलेंस शीट पर ऋण का लगभग एक-चैथाई या पांचवां हिस्सा NPA होने का खतरा है. अगले 12-18 माह में SME में लगभग 1 से 2.5 करोड़ नौकरियां जाने का अंदेशा है. खास कर विनिर्माण कम्पनियों के अस्थायी कर्मचारियों पर अधिक खतरा है. भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) में 2020 के अंत तक GDP वृद्धि महज 1-2 फीसदी के करीब रहने का अनुमान है. इसका सबसे बुरा असर छोटे व्यवसायों और गरीब तबकों पर होगा. इस भयानक पूर्वानुमान के पीछे न केवल ठोस तर्क हैं बल्कि यह वाकई एक हकीकत है. परंतु भारत एकमात्र संकटग्रस्त देश नहीं है. दरअसल एक वर्तमान अनुमान से कोविड-19 की चपेट में आई पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था (Global Economy) को 5-10 ट्रिलियन की चपत लग सकती है. कोविड-19 और पूरी दुनिया में इसकी त्रासदी को देखते हुए मुझे लगता है कि छोटे व्यवसायों के लिए इस वैश्विक महामारी से कई सीख लेने का अवसर है. इस आलेख में मैं इनमें का तीन उल्लेख करना चाहता हूं.
खुद कदम उठायें और जल्द उठायें: व्यवसायों को यह समझना होगा कि कोविड -19 के आगे दुनिया घुटने टेक चुकी है. ऐसे में जो समाज कम प्रभावित हुए हैं उनमें समस्या भांपने की बेहतर क्षमता है. चीन की घटना ने चीन के बाहर कुछ देशों को डट कर लड़ने का अवसर दिया. उदाहरण के लिए अमेरिका के ‘बे एरिया’ ने तत्काल उस क्षेत्र में वायरस सामने नहीं आने के बावजूद लड़ने की बेहतर तैयारी की क्योंकि वायरस से बुरी तरह प्रभावित होने का अंदेशा हो गया. उन्होंने सबसे खराब परिदृश्य का पूर्वानुमान कर बड़े पैमाने पर एहतियाती कदम उठाते हुए आने वाले संकट को रोका. उन्होंने जल्द लॉकडाउन किया, स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक दुरुस्त किया और इस तरह बेहतर कार्य प्रदर्शन किया.
एसएमई को तत्परात दिखाने की जरूरत
SME जो खुद कदम उठायेंगे या तत्परता दिखाएंगे जीतेंगे. इस संबंध में एंडी ग्रोव का यह कथन सही लगता है, कि ‘केवल जुनून वाले अस्तित्व में बने रहेंगे’. व्यवसायी जो तेजी से सोच और अमल कर सकते हैं वे जल्द नई बेहतर जिन्दगी पाएंगे. कहने का तात्पर्य यह है कि प्रतिस्पर्धा में अंदरूनी तौर पर कमजोर कितनी भी तेजी दिखाएं अस्तित्व का संकट बना रहेगा.
बुरे और अच्छे में फर्क करना: कोविड-19 ने कंटेनमेंट (अलग करने) के गुण को जग जाहिर किया है. सरकारें जो वैश्विक महामारी को सीमित करने में सक्षम हैं वे प्रभावित क्षेत्रों को स्वस्थ क्षत्रों से अलग करने में सक्षम हैं और उनके बीच संचार (माल और लोगों के परिवहन) रोकने में भी सफल रहे हैं. व्यवसाय जो बुरे और अच्छे में फर्क नहीं कर सकते उनके लिए क्षति कम करना कठिन होगा. अधिकतर SME के सामने चुनौती न केवल बुरे तत्वों को खोजने की है, बल्कि सटीक निदान के साथ उन्हें हाशिए पर रखने या खत्म करने की भी है. वस्तुतः यह कठिन समय बुरे तत्वों को बाहर निकालने के लिए उपयुक्त समय हो सकता है चाहे इसका अर्थ कमजोर कड़ी के रूप में जो लोग हैं उन्हें सेवा मुक्त करना हो. एसएमई यह याद रखें कि इस समय ‘मानवीय’ पहलू सामने रखना संगठन लिए अपूरणीय क्षति और शायद ऐसी क्षति की वजह बन सकती है जिसकी भरपाई नहीं होगी. बुरे प्रोजेक्ट, बुरे ऋण और बुरी रणनीतियों पर भी यही सिद्धांत लागू होता है.
आपदा आए इससे पहले निपटने की तैयारी: आपदा कभी कह कर नहीं आती है. कोविड-19 जैसी अदृश्य आपदा से लड़ने में वे सरकारें अधिक सफल हैं जिन्होंने विशाल स्वास्थ्य सेवा में निवेश कर रखा है. वैश्विक महामारी को गंभीरता से नहीं लेने वाले अधिक दुर्दशा में हैं. तेजी से कदम उठाने और क्षति कम करने के लिए व्यवस्था को साधन सम्पन्न बन कर तैयार रहना होगा. आज एसएमई दो सबसे अहम मसलों का हल चाहते हैं: ‘निरंतर व्यापार योजना’ और ‘करार मंे दैविक प्रकोप का क्लाज़’. कोविड-19 जैसे बेकाबू बाहरी प्रकोप से पहंुची चोट ने उन्हें इस क्लॉज के गूढ़ अर्थ पर दुबारा विचार के लिए मजबूर कर दिया है. उत्तरोत्तर अनिश्चित होते परिवेश में व्यापार जारी रखने के लिए अधिक लचीलापन और अनुकूलन आवश्यक है जिसके लिए एसएमई तैयार रहें.
छोटे व्यवसाय के मालिक खुद की ताकत, संकल्प और लचीलापन के साथ ऐसे किसी संकट से निपटने में सक्षम होने के लिए आपदा प्रबंधन क्षमताओं का विकास करें. एसएमई यह मान कर चलें कि आपदाएं आती रहेंगी. उन्हें इनसे बचने के अवसर पर ध्यान देना होगा और व्यावसाय की वास्तविकता और भावना को अलग कर के देखना होगा. ‘कभी हार नहीं मानना’ – उन्हें इस प्रसिद्ध कहावत में नहीं फंसना है. सैकड़ों छोटे व्यवसाय अपने उद्यम में कभी हार नहीं मानने की भावना से असमंजस में रहते हैं और उद्यम पर सारा संसाधन नष्ट कर देते हैं जबकि उसका अंततः दम तोड़ना तय है.
सीमित संसाधन वाले छोटे व्यवसाय आपदा आए इससे पहले निपटने की बेहतर तैयारी रखें ताकि उन्हें संभलने का एक और दिन मिले. अब सवाल यह है कि संगठन आपदा से निपटने की मजबूत प्रतिरक्षा कैसे बनाएं? हमारा शोध बताता है कि आपदा में संभलने की संगठनों की क्षमता का संबंध उनकी आम प्रतिरक्षा और प्रतिस्पर्धा में बने रहने की क्षमता से है. कुल मिला कर छोटे व्यवसायों को इस आपदा से जो तीन सीख लेनी चाहिए वह यह कि खुद कदम उठाना है और जल्द उठाना है; बुरे और अच्छे में फर्क करना; और इससे पहले कि आपदा आए निपटने की तैयारी रखना है.
(समीर साठे वाधवानी फाउंडेशन के तहत वाधवानी एडवांटेज के कार्यकारी उपाध्यक्ष हैं.)
Source: News18